नमस्ते दोस्तों, Mastani Story 2.0 की दुनिया में आपका स्वागत है जहाँ हर कहानी में छुपे होते हैं राज़, सस्पेंस और अनकही बातें। जो आपको एक नई दुनिया में ले जाएंगी। हर कहानी में होगा एक नया मोड़, नए अनुभव और वो इमोशन, जो आपके दिल को छू जाएगा और सोचने पर मजबूर कर देगा। तो तैयार हो जाइए, हमारे साथ एक नई और अद्भुत यात्रा की शुरुआत करने के लिए। तलाक के बाद का अकेलापन मेरा नाम रुपाशी है। मेरी शादी सिर्फ एक साल ही चली। शुरुआत में सब अच्छा था, लेकिन धीरे-धीरे रिश्ते बिगड़ने लगे। झगड़े, ताने, दूरी… और आखिरकार मुझे तलाक लेना पड़ा। 26 साल की उम्र में मैं अपने मायके लौट आई। सोचा था मां-बाप के पास रहकर सुकून मिलेगा, लेकिन वहां मुझे हर रोज़ ताने मिलते। मां कहतीं – “तेरे रहते तेरे भाई की शादी कैसे होगी?” पापा चुप रहते और भाई नज़रें चुराने लगे। मुझे लगने लगा कि मैंने अपने ही घर में जगह खो दी है। रिश्तेदार का सहारा इन्हीं दिनों मेरा एक रिश्तेदार – प्रवीण – मुझे फ़ोन करता है। वो शहर में अपनी पत्नी काजल के साथ रहता था। उसने कहा – “दीदी, आप हमारे पास आ जाओ। यहाँ आपको सुकून मिलेगा।” मैं रोते-रोते अपना सामान समेटी और शहर चली आई। वहाँ जाकर पहली बार मुझे लगा कि कोई मुझे अपनेपन से गले लगा रहा है। काजल भाभी ने बहुत प्यार दिया, मेरी हर ज़रूरत का ख्याल रखा। काजल की अधूरी ख्वाहिश कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि शादी के 7 साल बाद भी प्रवीण और काजल के बच्चे नहीं हैं। लोग उनसे बार-बार पूछते – “गुड न्यूज़ कब आएगी?” और हर सवाल पर काजल का चेहरा उतर जाता। एक दिन मैंने काजल को रोते देखा। मैंने पूछा – “भाभी, क्या हुआ?” वो बोली – “रुपाशी… सच तो यह है कि मैं कभी मां नहीं बन सकती। मेरे अंदर एक कमी है। लोग अगर जान गए तो मुझे बाँझ कहेंगे। हम बहुत इलाज करा चुके हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।” उनकी आँखों में इतना दर्द था कि मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैंने कहा – “तो बच्चा गोद क्यों नहीं ले लेते?” उन्होंने जवाब दिया – “हमें अपना ही बच्चा चाहिए, ताकि कोई कह न सके कि ये हमारा नहीं है।” सरोगेसी का प्रस्ताव फिर एक रात काजल ने मुझसे दिल की बात कही। उसने कहा – “रुपाशी, तुम हमारी मदद करो। तुम ही हमारे बच्चे की मां बन सकती हो – सरोगेसी के ज़रिए। अगर तुम तैयार हो जाओ, तो हम डॉक्टर की मदद से तुम्हारे गर्भ में हमारा बच्चा रख देंगे। तुम हमें माता-पिता बनने का सुख दे दोगी।” मैं हैरान रह गई। पहले तो लगा ये मज़ाक है, लेकिन वो बहुत गंभीर थीं। काजल बोलीं – “तुम्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। हम तुम्हारी पढ़ाई और करियर के लिए 10 लाख रुपये देंगे, ताकि तुम अपना ब्यूटी पार्लर खोल सको और खुद पर खड़ी हो सको। ये सिर्फ एक समझौता है, इसमें कोई ग़लत बात नहीं है।” बड़ा फैसला मैं रात भर सो नहीं पाई। एक तरफ मुझे अपने भविष्य की चिंता थी, दूसरी तरफ काजल और प्रवीण की अधूरी ख्वाहिश। आख़िरकार मैंने हां कर दिया। मैंने सोचा – “अगर मेरी वजह से किसी को संतान का सुख मिल सकता है और मुझे भी एक नई ज़िंदगी मिल सकती है, तो इसमें बुरा क्या है?” नई शुरुआत प्रवीण ने मुझे एक नामी डॉक्टर से मिलवाया। कुछ टेस्ट हुए, और फिर IVF प्रक्रिया शुरू हुई। कुछ हफ़्तों बाद डॉक्टर ने बताया – “बधाई हो, आप प्रेग्नेंट हैं।” उस दिन मैंने प्रवीण और काजल की आँखों में खुशी की चमक देखी। जो औरत सालों से तानों से टूटी थी, आज पहली बार मुस्कुरा रही थी। संघर्ष और उम्मीद गर्भावस्था आसान नहीं थी। मुझे उल्टियां होतीं, चक्कर आते। लेकिन प्रवीण और काजल ने मेरी देखभाल अपनी ज़िम्मेदारी मानकर की। उन्होंने घरवालों को यही बताया कि काजल गर्भवती है। लोगों के ताने धीरे-धीरे बंद हो गए। उनकी आँखों में अब सपने थे – अपने बच्चे को गोद में लेने के सपने। मैं भी खुश थी कि मेरी वजह से किसी का घर बस रहा था। कहानी का मोड़ लेकिन… जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैं खुद को सवालों में घिरा पाती – “क्या मैं सच में यह सब निभा पाऊँगी? क्या मैं अपने बच्चे को उन्हें सौंप दूँगी?” मेरे दिल में ममता जागने लगी थी, लेकिन मैंने खुद को याद दिलाया – “ये बच्चा मेरा नहीं है, ये सिर्फ एक वादा है।” अधूरी रात की सोच एक रात मैं छत पर बैठी सोच रही थी – मेरे जीवन में पहले ही कितनी मुश्किलें आई हैं, लेकिन शायद यह मेरा असली मकसद है – किसी और को रोशनी देना। काजल पास आई और बोली – “रुपाशी, तुम सिर्फ मेरी ननद नहीं, मेरी सच्ची बहन हो। तुमने जो किया है, उसके लिए मैं जिंदगी भर शुक्रगुज़ार रहूँगी।” उसकी आँखों के आँसू देखकर मेरे सारे सवाल जैसे थम गए। आगे क्या होगा? अब 9 महीने बाद जब यह बच्चा जन्म लेगा, तो क्या मैं उसे आसानी से सौंप पाऊँगी? या मेरी ममता मुझे रोक लेगी? क्या काजल और प्रवीण का सपना पूरा होगा? या मेरी ज़िंदगी में एक और मोड़ आने वाला है? 7वें महीने की शुरुआत दिन बीतते गए और मेरा पेट बड़ा होता गया। अब मैं 7वें महीने में थी। काजल हर रोज़ मेरे पास बैठकर मेरे पेट पर हाथ रखती और कहती – “ये मेरा बच्चा है… मैं इसे जी भरकर प्यार दूँगी।” उसकी आँखों में सपना था, और मेरे दिल में एक तूफ़ान। मैं सोचती – “क्या मैं सच में ये बच्चा दे पाऊँगी? क्या 9 महीने की ममता इतनी आसानी से छोड़ दी जाएगी?” समाज की नज़र गाँव में लोगों को यही बताया गया था कि काजल मां बनने वाली है। जब भी कोई आता, काजल मुस्कुराकर पेट सहलाती। लेकिन असलियत सिर्फ हम तीन लोग जानते थे। मैं कई बार सोचती – “अगर लोगों को सच पता चल गया तो? क्या मुझे ताने नहीं सुनने पड़ेंगे?” लेकिन फिर प्रवीण मुझे हिम्मत देता – “रुपाशी, तुम मजबूत हो। एक दिन यही लोग तुम्हारी तारीफ करेंगे कि तुमने किसी का घर बसाया।” अस्पताल की घड़ी डॉक्टर ने मुझे आराम करने की सलाह दी। काजल और प्रवीण हर हफ़्ते मुझे चेकअप के लिए ले जाते। एक दिन सोनोग्राफी में बच्चे की हलचल देखकर काजल की आँखें भर आईं। उसने मेरा हाथ पकड़कर कहा – “रुपाशी, तुम सिर्फ हमारी मदद नहीं कर रही, तुम हमें जिंदगी दे रही हो।” उस पल मुझे लगा कि मेरा फैसला सही था। घरवालों का दबाव इस बीच मेरे मायके से फ़ोन आया। मां ने गुस्से में कहा – “तू अभी भी उनके घर में क्यों पड़ी है? लोग बातें बना रहे हैं। तेरा भाई कहता है कि तेरी वजह से कोई लड़की उससे शादी नहीं करेगा।” मेरे सीने पर जैसे किसी ने पत्थर रख दिया। मां-बाप की चिंता समझ में आती थी, लेकिन वो मेरे बलिदान को क्यों नहीं देख पा रहे थे? मैंने सोचा – “कभी-कभी अपनों से ज्यादा पराए अपना बन जाते हैं।” आखिरी महीने की दहलीज़ 9वां महीना शुरू हो चुका था। अब हर पल मुझे डर रहता कि कहीं कोई जटिलता न आ जाए। डॉक्टर ने कहा – “डिलीवरी नॉर्मल भी हो सकती है, और सीज़ेरियन भी।” काजल दिन-रात मेरे पास बैठती। कभी मेरे पाँव दबाती, कभी कहानियाँ सुनाती। उसकी आँखों में इतना प्यार देखकर मैं भूल जाती कि ये बच्चा मेरा नहीं होगा। डिलीवरी की रात आखिरकार वो रात आ ही गई। अस्पताल का कमरा, तेज़ रोशनी, डॉक्टर और नर्सें। मैं दर्द से चीख रही थी और काजल मेरे हाथ पकड़े खड़ी थी। वो लगातार कह रही थी – “हिम्मत करो रुपाशी… बस थोड़ी देर और।” घंटों के दर्द के बाद अस्पताल की दीवारों में एक नन्हीं रोने की आवाज गूंजी। डॉक्टर ने कहा – “बधाई हो, बेटा हुआ है।” बच्चे की पहली झलक डॉक्टर ने बच्चा मेरी गोद में रखा। वो नन्हें हाथ, वो मासूम चेहरा… मेरी आँखों से आँसू झर-झर गिरने लगे। मेरे अंदर एक अजीब खींचतान थी – ममता बनाम वादा। कुछ देर बाद डॉक्टर ने बच्चा काजल को सौंप दिया। काजल खुशी से चीख पड़ी, वो रोते हुए बोली – “रुपाशी, ये मेरा सपना था… और तुमने इसे सच कर दिया।” अधूरा एहसास सभी खुश थे। प्रवीण पिता बनकर फूले नहीं समा रहे थे। काजल अपनी गोद में बच्चे को झुला रही थी। लेकिन मेरे भीतर सन्नाटा था। मैंने अपने दिल से एक टुकड़ा निकालकर किसी और को दे दिया था।
रात को मैं अकेले अस्पताल के कमरे में बैठी सोच रही थी – “क्या मैंने सच में सही किया? या मैंने खुद को हमेशा के लिए खाली कर दिया?” मां बनने का एहसास या खोने का दुख? डिलीवरी को तीन दिन हो चुके थे। काजल अपने बच्चे को सीने से लगाए रहती। उसकी आँखों में वही चमक थी, जिसकी तलाश वो सालों से कर रही थी। लेकिन जब-जब बच्चा रोता और उसकी नन्हीं उँगलियाँ हवा में लहरातीं, मेरा दिल जैसे किसी ने मरोड़ दिया हो। मैं सोचती – “ये बच्चा 9 महीने मेरी साँसों से जुड़ा रहा… और आज मुझे उससे दूर रहना पड़ रहा है।” काजल की खुशियाँ काजल पूरे मोहल्ले में मिठाई बाँट रही थी। रिश्तेदार फोन करके बधाई दे रहे थे – “बहुत देर बाद ही सही, लेकिन भगवान ने तुम्हें खुश कर दिया।” वो हर किसी को कहती – “मेरी गोद भर दी।” लेकिन अंदर से उसे डर था कि कहीं सच बाहर न आ जाए। वो चाहती थी कि रुपाशी का नाम इस कहानी में कभी न आए। रुपाशी का खालीपन अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद मैं अपने कमरे में अकेली बैठती। दीवारों पर लटके कैलेंडर को घूरती रहती, लेकिन दिमाग में बस वही नन्हा चेहरा घूमता। रात को नींद नहीं आती। कभी लगता – “शायद मैं उस बच्चे को लेने की हकदार हूँ, क्योंकि मैंने उसे अपनी कोख में रखा।” कभी सोचती – “नहीं, ये बच्चा मेरा नहीं… मैं तो बस एक ज़रिया थी।” मायके से टकराव इसी बीच मेरे पापा का फोन आया। उनकी आवाज़ ठंडी थी – “लोग पूछ रहे हैं कि तू कहाँ है? किसके साथ रहती है? क्या कर रही है? तेरी वजह से हमें सिर उठाना मुश्किल हो रहा है।” मैंने रोते हुए कहा – “पापा, मैं गलत नहीं हूँ। मैंने किसी का घर बसाने में मदद की है।” लेकिन उन्होंने फोन काट दिया। उस पल मुझे समझ आया कि समाज सच से ज्यादा दिखावे को महत्व देता है। काजल की हदें कुछ दिन बाद मैंने देखा कि काजल बच्चे को मुझसे मिलने तक नहीं देती। अगर मैं पास जाऊँ, तो वो कहती – “रुपाशी, तुम ज़्यादा मत जुड़ो। अब ये बच्चा सिर्फ मेरा है।” उसकी बात सुनकर मेरा दिल टूट गया। 9 महीने का रिश्ता, काजल के दो शब्दों में जैसे मिट गया। प्रवीण का बदलता व्यवहार शुरुआत में प्रवीण मुझे बहन की तरह मानता था। लेकिन अब उसका ध्यान सिर्फ अपनी पत्नी और बच्चे पर था। मेरी तरफ़ उसके रवैये में दूरी बढ़ने लगी थी। वो कहता – “रुपाशी, अब तुम्हें अपनी ज़िंदगी पर ध्यान देना चाहिए। हमने वादा किया था कि तुम्हें पैसे देंगे, ताकि तुम अपना काम शुरू कर सको। अब आगे का रास्ता तुम खुद तय करो।” रुपाशी का संघर्ष रात को मैं आईने के सामने खड़ी होकर खुद से पूछती – “क्या मैं सिर्फ एक समझौता थी? क्या मेरी ममता की कोई कीमत नहीं?” लेकिन फिर एक आवाज़ अंदर से आती – “नहीं, तूने जो किया वो बलिदान है। तेरे बिना ये घर कभी नहीं बसता।” नया मोड़ एक दिन काजल ने मुझे साफ कह दिया – “रुपाशी, अब तुम्हारा यहाँ रहना ठीक नहीं। लोग सवाल करेंगे। बेहतर होगा तुम कहीं और जाकर अपनी ज़िंदगी शुरू करो।” मैं सन्न रह गई। जिस घर को मैंने अपने खून से रोशन किया, उसी घर से मुझे निकलने का आदेश मिल रहा था। दिल का सवाल मैंने तय कर लिया – अब मैं अपनी ज़िंदगी खुद बनाऊँगी। लेकिन जाते-जाते मैंने एक नज़र बच्चे पर डाली। उसकी मासूम आँखों ने जैसे मुझसे पूछा – “मां, तू मुझे छोड़कर जाएगी?” उस सवाल का जवाब मेरे पास नहीं था। घर छोड़ने की घड़ी सुबह का वक्त था। खिड़की से आती हल्की धूप कमरे की दीवारों पर फैल रही थी। मैंने बच्चे की रोने की आवाज सुनी। दिल चाहा दौड़कर उसे अपनी बाहों में भर लूँ, लेकिन तभी काजल ने तेज़ी से उसे उठाया और कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया। उस पल जैसे मेरे भीतर कुछ टूट गया। मैंने महसूस किया कि अब इस घर में मेरी जगह नहीं रही। रात को जब मैं अपने बिस्तर पर बैठी थी, काजल मेरे पास आई। उसकी आवाज़ ठंडी और दृढ़ थी— “रुपाशी, अब तुम्हें अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचना चाहिए। हमने तुम्हारा काम पूरा कर दिया है, और तुमने हमारा। अब इस घर में तुम्हारा रहना ठीक नहीं है। लोग सवाल करेंगे।” मैंने कुछ कहना चाहा, लेकिन शब्द गले में अटक गए। मेरे कानों में बस यही गूंजता रहा— “अब तुम्हारा यहाँ रहना ठीक नहीं।” मायके की दीवारें मैंने सोचा— “शायद मायके लौट जाना ही सही रहेगा।” लेकिन जब फोन पर मां से बात की तो उनकी आवाज़ में गुस्सा और ताने थे। “तेरे कारण हमारा सिर झुक गया है। तेरे भाई की शादी में रुकावट आ रही है। लोग पूछते हैं, तेरी बेटी कहाँ है, किसके साथ रहती है? रुपाशी, अब हमें और शर्मिंदा मत कर।” मेरे हाथ काँपने लगे। जहाँ से मुझे सहारा मिलना चाहिए था, वही घर मुझे ठुकरा रहा था। अकेलेपन की राह मैंने धीरे-धीरे अपना सामान बाँधना शुरू किया। कुछ कपड़े, कुछ किताबें और थोड़ी-सी बचत। बच्चे के खिलखिलाते चेहरे की यादें मेरी आँखों के सामने तैर रही थीं। जब मैं दरवाज़े से बाहर निकली, तो प्रवीण ने औपचारिकता से कहा— “रुपाशी, तुम्हारे लिए हमनें दस लाख रुपये अलग रख दिए हैं। तुम अपना काम शुरू करो। यही तुम्हारे भविष्य के लिए बेहतर होगा।” उसके शब्दों में अपनापन नहीं था। बस एक औपचारिक कर्तव्य की तरह। नई जगह, नई शुरुआत मैं शहर के एक छोटे से मोहल्ले में किराए पर कमरा लेने चली गई। कमरा बहुत छोटा था—एक बिस्तर, एक टूटी मेज और लोहे की अलमारी। लेकिन यही मेरी नई दुनिया थी। पहली रात, जब मैं अकेली उस कमरे में बैठी थी, तो बच्चे की रोने की आवाज़ जैसे मेरे कानों में गूंज रही थी। मैं बार-बार दीवारों को घूरती और सोचती— “क्या सचमुच मैंने अपना बच्चा खो दिया?” लेकिन खुद को समझाती— “नहीं, ये बच्चा मेरा नहीं था। ये तो एक वादा था, एक ज़िम्मेदारी थी।” ब्यूटी पार्लर का सपना मैंने तय किया कि अब अपनी ज़िंदगी खुद बनानी होगी। मैंने अपने पुराने सपने को याद किया—ब्यूटी पार्लर खोलने का सपना। मैंने पैसों से एक छोटा-सा शॉप किराए पर लिया। दिन भर ग्राहकों के आने का इंतज़ार करती, रात को अकेले बैठकर खाता लिखती। धीरे-धीरे मोहल्ले की औरतें आने लगीं। कोई हेयर कट के लिए, कोई मेहंदी के लिए, कोई शादी-ब्याह की तैयारी के लिए। मेरी ज़िंदगी जैसे धीरे-धीरे पटरी पर आने लगी। ममता की कसक लेकिन चाहे जितना काम कर लूँ, रात को बिस्तर पर लेटते ही दिल में कसक उठती। “क्या बच्चा मुझे याद करता होगा? क्या उसकी आँखों में मेरी परछाई होगी? क्या काजल उसे कभी बताएगी कि उसकी असली मां कौन है?” कभी-कभी मैं मंदिर जाकर भगवान से प्रार्थना करती— “हे प्रभु, मुझे इतनी शक्ति देना कि मैं अपने दिल की ममता को दबा सकूँ। क्योंकि अगर मैं टूट गई, तो सब कुछ खत्म हो जाएगा।” समाज की नजरें एक दिन मोहल्ले की दो औरतें मेरे पार्लर में आईं। वो धीरे-धीरे फुसफुसा रही थीं— “यही है ना वो लड़की… जिसके बारे में सुना था? कहा जाता है, किसी और का बच्चा जनकर आई है।” उनकी बातें सुनकर मेरा दिल काँप गया। मैंने सिर झुका लिया और मुस्कुराकर काम करती रही। लेकिन भीतर से आंसू बह रहे थे। अप्रत्याशित मुलाक़ात कुछ महीनों बाद, जब मैं बाजार से लौट रही थी, तो अचानक मेरी नज़र काजल और प्रवीण पर पड़ी। उनकी गोद में वही बच्चा था। बच्चा अब हँसना सीख गया था। उसकी आँखें चमक रही थीं। मेरी नज़रें उससे हट नहीं रही थीं। काजल ने मुझे देखा और तुरंत नजरें फेर लीं। लेकिन बच्चे ने मुझे देख कर हाथ फैलाया, जैसे वो मुझे पहचानता हो। मेरे कदम वहीं ठहर गए। दिल चिल्लाया— “मेरा बच्चा…” लेकिन अगले ही पल मैंने खुद को रोका और मुड़कर घर की ओर चली गई। अंदर की लड़ाई उस रात मैं बहुत रोई। मेरे दिल में दो आवाज़ें लड़ रही थीं। एक कहती— “तू मां है, हक तेरा है। जा और अपना बच्चा वापस ले ले।” दूसरी कहती— “नहीं रुपाशी, तूने वादा किया था। तूने ये बच्चा देकर किसी का घर बसाया है। अगर तूने वादा तोड़ा तो सब खत्म हो जाएगा।” मैं तकिये में मुंह छुपाकर घंटों रोती रही। मंदिर का सहारा अगले दिन मैं मंदिर गई। घंटियों की आवाज़, अगरबत्ती की महक और मंत्रोच्चार ने मुझे थोड़ी शांति दी।

मैंने भगवान से कहा— “मुझे सही रास्ता दिखाइए। मुझे इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपनी ममता और अपने वादे के बीच सही फैसला कर सकूँ।” नई उम्मीद दिन बीतते गए। मेरे पार्लर का काम अच्छा चलने लगा। मैं मोहल्ले की औरतों के लिए रोल मॉडल बनने लगी। लोग कहते— “देखो, कैसे एक लड़की ने अपने दम पर ज़िंदगी बनाई है।” लेकिन मेरे दिल के अंदर का खालीपन अब भी जिंदा था। समय की चाल दो साल बीत गए। बच्चा अब नन्हें कदमों से चलना सीख चुका था। उसकी मासूम बातें और खिलखिलाहट काजल और प्रवीण की ज़िंदगी में रंग भर रही थीं। उधर रुपाशी का पार्लर अब अच्छा-खासा चल रहा था। वो मोहल्ले में “मजबूत औरत” के नाम से जानी जाने लगी थी। लेकिन भीतर का खालीपन अब भी जिंदा था। रात को जब अकेली होती, तो वही नन्हा चेहरा आँखों के सामने आ जाता। अप्रत्याशित मुलाक़ात एक दिन, जब रुपाशी किसी शादी में मेहंदी लगाने गई थी, वहाँ उसने काजल और प्रवीण को देखा। उनकी गोद में वही बच्चा था। अब वो दौड़ता-भागता, सबको “मम्मा-पापा” कहकर बुला रहा था। लेकिन जैसे ही उसकी नज़र रुपाशी पर पड़ी, वो दौड़ता हुआ उसकी ओर आया और उसकी गोद में चढ़ गया। रुपाशी के दिल में हलचल मच गई। उसने बच्चे को कसकर गले से लगा लिया। काजल घबराई और झटके से बोली— “बेटा, आओ… ये तुम्हारी आंटी हैं।” लेकिन बच्चा बार-बार कह रहा था— “मम्मा… मम्मा!” उस शब्द ने माहौल को सन्न कर दिया। काजल का चेहरा उतर गया और प्रवीण ने जल्दी से बच्चे को अपनी ओर खींच लिया। काजल की बेचैनी उस रात काजल बेचैन थी। वो सोचने लगी— “अगर बच्चे ने सबके सामने रुपाशी को मां कहना शुरू कर दिया, तो ये राज़ छुपा नहीं रहेगा। लोग सवाल करेंगे, और हमारी इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी।” उसने प्रवीण से कहा— “हमें रुपाशी से दूरी बनानी होगी। वरना ये बच्चा सच को बाहर ले आएगा।” रुपाशी का दिल दूसरी ओर रुपाशी उस रात चैन से सो नहीं पाई। उसके कानों में गूंज रहा था— “मम्मा… मम्मा!” उसने आईने में खुद से पूछा— “क्या सचमुच ये बच्चा मुझे मां मानता है? क्या खून का रिश्ता इतना गहरा होता है कि कोई सच हमेशा छुपा ही न सके?” समाज का तूफ़ान कुछ हफ़्तों बाद, मोहल्ले में अफवाहें फैलने लगीं। लोग कहने लगे— “ये बच्चा सच में काजल का नहीं है। कहा जाता है कि उसे किसी और औरत ने जन्म दिया है।” ये बात आग की तरह फैल गई। काजल और प्रवीण समाज के सवालों से परेशान हो उठे। काजल रो-रोकर कहती— “प्रवीण, अब हम क्या करेंगे? लोग हमें बाँझ कहेंगे, हमारा मज़ाक उड़ाएँगे।” सच का सामना आख़िरकार एक दिन प्रवीण ने रुपाशी से मिलने का फैसला किया। वो उसके पार्लर आया और बोला— “रुपाशी, हमें सच बताना होगा। हम छुपते-छुपते थक गए हैं। लोग हमें तोड़ रहे हैं।” रुपाशी की आँखों में आँसू आ गए। उसने धीमे स्वर में कहा— “सच छुपता नहीं है, प्रवीण। लेकिन क्या तुम तैयार हो इस सच का सामना करने के लिए? क्या तुम अपने बच्चे को ये बता पाओगे कि उसकी असली मां मैं हूँ?” बच्चे की जिज्ञासा समय बीतता गया और बच्चा बड़ा होने लगा। अब वो चार साल का था। एक दिन उसने काजल से पूछा— “मम्मा, मेरी तस्वीरें पेट में क्यों नहीं हैं? बाकी बच्चों की मां दिखाती हैं।” काजल चौंक गई। उसके पास कोई जवाब नहीं था। उसने बस बच्चे को गले लगाया और रोने लगी। रुपाशी का बलिदान आख़िरकार काजल और प्रवीण ने सच मान लिया। उन्होंने रुपाशी को बुलाया और कहा— “हम जानते हैं कि ये बच्चा तुम्हारे खून का है। लेकिन तुमने हमें मां-बाप बनने का सुख दिया। हम जिंदगी भर तुम्हारे आभारी रहेंगे।” रुपाशी मुस्कुराई, लेकिन उसकी आँखों में आँसू थे। उसने बच्चे के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा— “ये बच्चा तुम्हारा है। मैंने वादा किया था, और मैं अपना वादा कभी नहीं तोड़ूँगी। मेरे लिए इतना काफी है कि उसने मुझे एक बार ‘मम्मा’ कहा था।” समाज की सोच में बदलाव धीरे-धीरे मोहल्ले में लोग रुपाशी की इज़्ज़त करने लगे। लोग कहते— “देखो, इसने किसी और को माँ बनने का सुख दिया। ऐसी औरत ही असली देवी कहलाने लायक है।” रुपाशी अब और भी मज़बूत बन गई। उसका पार्लर शहर का सबसे नामी पार्लर बन गया। वो औरतों के लिए प्रेरणा बन गई। आत्मसम्मान की नई पहचान एक दिन मंदिर में, बच्चे ने फिर दौड़कर रुपाशी को गले लगाया। उसने कहा— “मम्मा, आप मेरी दूसरी मम्मा हो ना?” रुपाशी की आँखों में आँसू आ गए। उसने बच्चे को उठाकर सीने से लगाया और बोली— “हाँ बेटा, मैं तुम्हारी दूसरी मम्मा हूँ। लेकिन तुम्हारी असली मम्मा हमेशा काजल ही रहेगी।” उस पल रुपाशी ने समझ लिया— ममता का अर्थ सिर्फ अपने बच्चे को पालना नहीं है, बल्कि किसी और की खुशी के लिए अपना सब कुछ त्याग देना भी है। समापन आज रुपाशी की पहचान सिर्फ एक औरत की नहीं, बल्कि त्याग और शक्ति की मिसाल बन चुकी थी। उसकी कहानी समाज को यह सिखा गई— “मां वही नहीं होती जो बच्चे को जन्म दे, मां वो भी होती है जो बच्चे के लिए अपनी दुनिया त्याग दे।”