गरीबी, प्यार और धोखे की कहानी – 22 साल का लड़का और 33 साल की औरत

22 साल का लड़का और 33 साल की औरत – मजबूरी, प्यार और धोखे की कहानी

यह कहानी कोमल नाम की एक औरत की है जिसकी उम्र 33 साल है। उसकी ज़िंदगी तब बदल जाती है जब 22 साल का एक लड़का उसके जीवन में आता है। गरीबी, मजबूरी, प्यार और धोखे के इस सफर में वह किस तरह से अपने बच्चों और अपने भविष्य के लिए संघर्ष करती है, यही इस दिल छू लेने वाली हिंदी कहानी का असली सार है।

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परिचय: इस कहानी में आपको प्यार, जज्बात और दिल को छू लेने वाले पल मिलेंगे। वीडियो देखना न भूलें!

कहानी की शुरुआत

Mastani Story की दुनिया में आपका स्वागत है जहाँ हर कहानी में छुपे हैं राज़, सस्पेंस और अनकही बातें। चलिए शुरू करते हैं। एक दिन 22 साल का लड़का मेरे पास आया और उसने मुझसे कुछ ऐसी इच्छा ज़ाहिर किया कि सुन कर मेरे होश उड़ गए। मैंने कभी नहीं सोचा था कि 22 साल का लड़का इतनी आसानी से ऐसी बात कह सकता है पर क्या करूँ? मैं बहुत खूबसूरत थी।और मुझे पैसे की सख्त जरूरत थी तो मैंने सोचा ये 22 साल का लड़का मेरा क्या ही बिगाड़ लेगा? ज्यादा से ज्यादा 2 मिनट टिक पायेगा। वैसे भी इसमें मेरा फायदा दोनों तरफ से था। ये सोच कर मैंने उसकी बात मान ली और उससे कही की वो अपनी इच्छा पूरी कर सकता है।लेकिन जिसे मैंने बच्चा समझ कर इजाजत दी, उसने तो पूरी रात मुझे नमस्ते दोस्तों आप सभी का स्वागत है। मेरे चैनल पर एक बार फिर मैं आपके सामने एक रोमांचक कहानी लेकर आई हूँ। अगर आपको ये कहानी पसंद आए तो कृपया वीडियो को एक लाइक जरूर करें। तो चलिए शुरू करते हैं।मेरा नाम कोमल है और मेरी उम्र 33 साल है, लेकिन मैं अपनी उम्र से कहीं ज्यादा जवान दिखती थी। मुझे पैसे की बहुत जरूरत थी लेकिन कोई रास्ता नहीं सूज रहा था। एक दिन मैं घर पर अकेली थी, तब मैंने अपने गले में दुपट्टा नहीं डाला था और घर के काम कर रही थी।तभी एक 22 साल का लड़का हमारे घर आया और आकर मेरे सामने खड़ा हो गया और जीस नज़र से वो मुझे देख रहा था उससे मुझे अंदाजा हो गया की वो क्या चाहता है। फिर उस लड़के ने अपना परिचय दिया। उसने कहा, देखिये कोमल दीदी, मेरा नाम चन्दन है और मैं अकेला हूँ।और मैं आपके साथ ये बात पक्की करना चाहता हूँ। आप बस एक बार मुझे अपने करीब आने दे, मैं आपको कोई परेशानी में नहीं डालूंगा बल्कि आपकी जरूरत के हिसाब से हर महीने पैसे दे दूंगा। तब उस 22 साल के लड़के की बात सुन कर मैंने उसे सिर से पांव तक गौर से देखी।उसकी लम्बाई चौड़ाई तो अच्छी थी, लेकिन उम्र मात्र 22 साल था। फिर मैंने उससे माफी मांगी और बोली, चन्दन मैं तुमसे इस बारे में कोई बात नहीं कर सकती। क्यों की तुम अभी उतने बड़े नहीं हुए हो, इसलिए मुझे नहीं लगता की तुम्हारी उम्र ऐसी चीजों के लिए हुई है।इस पर वो हंसते हुए बोला, हनन दीदी, मुझे 5 साल का तजुर्बा है। मैं 5 साल से ये काम कर रहा हूँ और मेरे आगे पीछे कोई नहीं है। मैं अकेला हूँ और अपने काम में माहिर हूँ। इस लिए आप मुझ पर भरोसा कर सकती है। इसमें आपको कभी पछताना नहीं पड़ेगा बल्कि।आप बाद में अपने इस फैसले पर खुश होंगी। तब उसकी ये बात सुनकर मैं दंग रह गई कि 22 साल का लड़का वो भी अकेला ये सब कैसे कर सकता है? फिर मैंने उससे पूछा तुम्हारे माँ बाप कहाँ है? तो उसने जवाब दिया मैं अकेला इंसान हूँ, मेरे माँ बाप नहीं रहे।शुरू में इधर उधर धक्के खाता था। फिर मैंने ये काम शुरू किया। अब ये काम अच्छा चल रहा है इसलिए मैं आगे बढ़ना चाहता हूँ। इसीलिए आपके पास बात करने आया हूँ। अगर आप मेरा साथ दे तो मैं भी आपके बहुत काम आऊंगा। तब उसकी बातें सुनकर मैं हैरान थी।लेकिन तब मुझे सचमुच ऐसे किसी शख्स की ज़रुरत थी जो मेरे ऊपर की जगह किराये पर ले ले और ये लड़का खुद मुझे ये ऑफर दे रहा था और दूसरी बात ये थी की अगर उसके साथ ये बात पक्की हो जाती तो मुझे हर महीने एक निश्चित रकम मिलती जिससे मेरा घर चलाना आसान हो जाता।लेकिन फिर मेरे मन में ख्याल आया की अगर वो समय पर पैसे नहीं दे पाया तो मैं मुसीबत में पड़ जाऊँगी। इसीलिए मैंने उससे कहा चन्दन मुझे सोचने का वक्त चाहिए। इस पर वो हल्के से सिर हिला कर बोला, ठीक है दीदी, लेकिन ज्यादा देर मत कीजिये।मैं कल फिर आऊंगा। इसके बाद वो चला गया लेकिन मेरे मन में उसकी बातें गूंजती रही। रात भर में सो ना सकी एक तरफ पैसे की जरूरत, दूसरी तरफ नैतिकता का सवाल क्या मैं उसकी बात मान लूँ? क्योंकि चन्दन की 22 साल का था।लेकिन उसका जोश और आत्मविश्वास मुझे बार बार सोचने पर मजबूर कर रहा था। लेकिन मुझे क्या पता था कि जिसे मैं 22 साल का सीधा सादा लड़का समझ रही थी, वो इतना सीधा नहीं था बल्कि इस लड़के ने तो कुछ ही समय में मेरी दुनिया उलट पलट कर दिया।जब हम दोनों के बीच थोड़ा सा प्यार और गरीबी बढ़ने लगी और मैंने उसे अपने घर के अंदर आने की इजाजत भी दे दी। तब से वो चाय नाश्ते के लिए मेरे कमरे में अक्सर आने लगा। बाकी समय तो वो अपनी दुकान पर बिताता था, तब मेरे पति विक्रम को भी इस बात से कोई शिकायत नहीं थी।उनके लिए तो चन्दन बस एक 22 साल का बच्चा था और सच ये था की चन्दन के आने से हमारे जीवन का अकेलापन कुछ कम हुआ था। अब मैं पहले की तरह उदास और चुपचाप नहीं रहती थी। अगर बात करने को कुछ ना भी हो तो मैं चन्दन से बातें करती रहती थी, लेकिन मौसम बदलने की वजह से।विक्रम की तबियत बहुत खराब रहने लगी तब मेरे पास उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए पैसे भी नहीं थे। एक दिन इन्हीं सब बातों को सोचते हुए मेरी आँखों से आंसू बह रहे थे, तभी चन्दन ने मुझे इस हालत में देख लिया और पूछने लगा दीदी आपको क्या हुआ? आप रो क्यों रही है? तब मैंने उसे बताया विक्रम को हॉस्पिटल ले जाना है, लेकिन मेरे पास पैसे नहीं है। मैं ज़िन्दगी से तंग आ चुकी हूँ। अब मुझे अकेले ही हर मुसीबत से लड़ना पड़ता है। विक्रम तो मेरी मदद के बिना बिस्तर से उठ भी नहीं पाते। तब मैंने ये भी कही काश।मेरा कोई बच्चा होता तो शायद मेरी ज़िन्दगी थोड़ी आसान हो जाती। तब बातों बातों में मैंने अपने दिल की बात चन्दन के सामने कह दी। तब मेरी बात सुन कर वो हँसते हुए बोला तो दीदी आप बच्चा पैदा क्यों नहीं करती? इसमें क्या दिक्कत है? तब उसकी बात सुन कर मैं शर्मा गयी।क्योंकि मैं उसे कैसे बताती की विक्रम अब बिस्तर पर पड़े हैं, वो अभी उस हालत में नहीं है कि हम बच्चा पैदा कर सके। वैसे शादी के शुरुआती दिनों में विक्रम नहीं चाहते थे की हम अभी बच्चे की जिम्मेदारी ले और जब हमें बच्चे की जरूरत महसूस हुई तब विक्रम की हालत ऐसी नहीं थी।की वो बच्चा पैदा करने में सक्षम हो क्योंकि जब हमें बच्चे की ख्वाहिश हुई तभी अचानक उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उसके बाद वो किसी भी चीज़ के काबिल नहीं रहे। फिर हमारा प्यार भरा रिश्ता धीरे धीरे मजबूरी के रिश्ते में बदल गया।अब मैं मजबूरी में ही विक्रम की सेवा कर रही थी क्योंकि मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था। तब चन्दन ने शायद मेरे चेहरे के हाव भाव पढ़ लिए थे इसलिए उसने कहा, दीदी आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है, मैं आपके साथ हूँ।जल्द ही आपकी सारी समस्याओं का हल हो जाएगा। तब चन्दन की बातों पर मैं हस पड़ी क्योंकि इतनी छोटी उम्र में उसमें इतना हौसला था की वो अकेले ही हर मुसीबत से लड़ लेता था और मैं इतनी उम्र गुज़रने के बाद भी इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई।फिर चन्दन ने बताया कि उसने 11 साल की उम्र में अपने माँ बाप को दिया था फिर भी वो इस दुनिया की भीड़ में खोया नहीं। अब जब उसकी दुकान खाली होती वो हमारे घर चला आता। अब तो विक्रम को नहलाने की जिम्मेदारी भी उसने अपने कंधों पर ले ली थी। ज्यादातर समय।वो विक्रम की देखभाल में जुटा रहता क्योंकि अब मेरी हालत पहले जैसी नहीं थी। कई बार चन्दन विक्रम के पास जाकर बैठता और तब मुझे लगता की शायद विक्रम और चन्दन के बीच दोस्ती हो गई है। अब चन्दन की वजह से मेरी ज़िन्दगी बदल गई थी। अब वो कभी मेरे लिए फल लाता तो कभी कुछ और।ऐसे ही दिन गुज़रने लगे। फिर नौ महीने बाद मैंने एक बहुत खूबसूरत बच्चे को जन्म दिया। वो ना तो मेरे जैसा था, ना ही विक्रम जैसा बल्कि हैरान करने वाली बात ये थी की वो बिलकुल चन्दन जैसा दिखता था। तब मैं कभी बच्चे का चेहरा देखती।तो कभी हैरानी से चन्दन की ओर देखती। फिर मैंने चन्दन से पूछा, मेरे बच्चे का चेहरा तुम्हारे जैसा कैसे हो गया? तब उसने ऐसी बात कही की मैं चौंक गयी। उसने कहा दीदी आपने दिन रात मेरे बारे में इतना सोचा की? आपका बच्चा मेरे जैसा हो गया। कहते है

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कहानी का रोमांचक हिस्सा

ना माँ अगर किसी को बहुत देखे तो बच्चा भी वैसा ही हो जाता है। तब चन्दन की बात सुनकर मैं ना सिर्फ चौंकी बल्कि शर्मा भी गयी क्योंकि इतनी छोटी उम्र का लड़का इतना कुछ कैसे जानता है? हालांकि अब मेरी गोद में बच्चा आ गया था। मुझे तो ख़ुशी का ठिकाना नहीं होना चाहिए था, लेकिन बच्चे को घर लाने के बाद मुझे लगा की मेरी ज़िन्दगी और मुश्किल हो रही है क्योंकि पहले से ही घर का खर्च चलाना मुश्किल था और अब बच्चे की वजह से खर्च और बढ़ गया था।मैं समझ नहीं पा रही थी की ये खर्च कैसे पूरा करू? लेकिन तभी चन्दन ने मेरे बच्चे के खर्च के लिए पैसे देना शुरू कर दिया। तब मेरे और मेरे बच्चे की जिम्मेदारी उसने अपने कंधों पर ले लिया था। अब वो हमारे लिए बिलकुल पराया नहीं रहा था क्योंकि मैं उसे छोटे भाई की तरह देखने लगी थी।क्योंकि उसकी वजह से हमारी हालत बेहतर हुई थी। जब मेरा बच्चा सात महीने का हुआ तब मुझे पता चला की मैं फिर से पेट से हूँ, तब मैं हैरान थी की मैं इतनी जल्दी दोबारा पेट से कैसे हो गयी। वैसे हमारी शादी को 10 साल होने को आये थे।लेकिन इससे पहले मैं एक बार भी पेट से नहीं हुई थी। इसीलिए मुझे डर लग रहा था की मैं इतनी जल्दी दूसरे बच्चे की ज़िम्मेदारी कैसे उठाऊंगी क्योंकि मेरा पहला बच्चा अभी छोटा था और ऊपर से विक्रम की ज़िम्मेदारी भी थी। मैं इस असमंजस में थी।तभी विक्रम ने मुझे समझाया और कहा, जब भगवान ने हमें फिर से आशीर्वाद दिया है तो तुम मना मत करो। जीस तरह पहला बच्चा हमारे पास आया वैसे ही दूसरा भी आ जाएगा। तब मैंने सिर झुकाकर बस इतना कहा हमारी ज़िम्मेदारी चन्दन के कंधों पर है।अगर दूसरा बच्चा भी आ गया तो उसका खर्च भी चन्दन पर ही पड़ेगा। और अगर दूसरा बच्चा दुनिया में आ गया तो मैं बच्चों में इतनी व्यस्त हो जाऊँगी की मेरे पास तुम्हारा ध्यान रखने का वक्त नहीं बचेगा। इसके बाद विक्रम ने एक रात अचानक कहा।मुझे लगा कि मेरे शरीर के पास किसी का शरीर है, कोई मेरे शरीर के साथ खेलने की कोशिश कर रहा है। तब वो उठकर बैठ गए और चिल्लाने लगे। उनकी चीख सुनकर मेरी नींद खुल गई। फिर मैंने जल्दी से कमरे की लाइट जलाई और जो देखा उससे मेरे रोंगटे खड़े हो गए।क्योंकि हमारे ही मोहल्ले का एक आदमी मेरे सामने खड़ा था, उसे देखकर मैं सन्न रह गई। पहले तो वो थोड़ा शर्मिंदा हुआ, फिर बोला मैंने तो अभी कुछ किया ही नहीं। तुम्हारे पति ने खुद मुझे इजाजत दी थी कि मैं आज रात तुम्हारे शरीर के साथ खेल सकता हूँ।उसी वक्त मेरी चीख सुनकर चन्दन दौड़ता हुआ मेरे कमरे में आया। उसे देखते ही वो आदमी बोला चन्दन तुने तो कहा था कि इसका कोई होश हवास नहीं रहता, मैं आराम से अपनी इच्छा पूरी कर लूँगा, लेकिन ये तो जाग गई। उस आदमी की बात सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई।तभी चन्दन घबराते हुए मेरी ओर देखने लगा। मैं समझ नहीं पा रही थी कि ये सब क्या हो रहा है? फिर वो आदमी गुस्से में चन्दन को गालियां देता हुआ चला गया। फिर मैंने घृणा भरे लहज़े में चन्दन से पूछा ये सब क्या था? तो चन्दन ने कहा, दीदी।आपके पति के पास इतने पैसे भी नहीं थे की वो इस घर को चला सके इसलिए उन्होंने मुझसे कहा कि मैं आपका धंधा करवाऊं, जब कोई ग्राहक मिलता था, मैं आपके बच्चों को बाहर ले जाता था और आपके दूध में नींद की दवा मिलाकर आपको दे देता था, फिर आप सो जाती थी।और ग्राहक आकर अपनी प्यास बुझाकर चला जाता था। आपके ये चारों बच्चे भी किसी ना किसी ग्राहक के है क्योंकि विक्रम भाई ने पिता बनने की कोई काबिलियत नहीं है, लेकिन मैंने अपनी मर्जी से आपके साथ कुछ नहीं किया। जैसा आपके पति ने कहा मैंने वही किया।मैंने आपको उनके कहने पर बेचा, इसीलिए मैं आपके लिए ग्राहक ढूंढता था, दाम तय करता था और पैसे लेकर आपके लिए खर्च करता था। तब उसकी बात सुनकर मेरे दिल में आग लग गई क्योंकि हमारे घर में कमी ज़रूर थी।लेकिन मेरे पति ने कभी मेरे शरीर को बेचने की बात नहीं सोंची थी, ना ही उनके दिल में कभी ऐसा ख्याल आया था इसलिए तुमने उन्हें गलत बातें समझा कर राजी किया। अब मैं समझ गई की तुमने औरतों का सामान बेचने की दुकान क्यों खोली थी? इस बहाने तुम औरतों की मजबूरी का पता लगाते थे और उन्हें देह व्यापार में धकेलते थे। इसके बाद मैंने चन्दन को तुरंत दुकान खाली करने को बोली और अपने बच्चों को उससे छीन लिया। तब मेरे चार छोटे छोटे बच्चे मेरे सामने थे, लेकिन उनके पिता कौन था? मुझे नहीं पता था अब मुझे खुद पर घिन आने लगी की मैं कितनी बेवकूफ थी की मुझे ये भी नहीं पता था की ये बच्चे मेरे पति के नहीं है। मैं इन दो मर्दों के सामने बेवकूफ बन गई थी।

कहानी का समापन

अब मेरा गुनहगार सिर्फ चन्दन ही नहीं बल्कि विक्रम भी था। अब मैं क्या करती? मैं विक्रम की पत्नी थी और उनकी हालत ऐसी नहीं थी की मैं उन्हें छोड़ दूं। इसी लिए मजबूरी में मुझे उनके साथ रहना पड़ा। चन्दन तो दुकान छोड़कर चला गया, फिर मैंने कुछ पैसे जोड़कर उस दुकान को अपने कब्जे में लिया। फिर मैंने उस दुकान को।एक छोटी सी सिलाई की दुकान में बदल दिया। क्यों की मेरे पास पहले से सिलाई का हुनर था जो मैंने अपनी माँ से सीखी थी तो अब सिलाई की दुकान खोलने के बाद मोहल्ले की औरतें मेरे पास अपने कपड़े सिलवाने आने लगी। फिर धीरे धीरे मेरी दुकान चल निकली।जिससे मैंने अपने बच्चों को प्यार और मेहनत से पालना शुरू किया। हालांकि मेरे दिल में अब भी एक टीज थी की मेरे बच्चों के पिता कौन है? लेकिन मैंने तय किया की मैं उन्हें अपने बच्चों की तरह ही पालूंगी क्यों की? वे मेरे ही अंश थे और मैं उनकी माँ थी।अब विक्रम की हालत भी धीरे धीरे सुधारने लगी थी। डॉक्टरों ने कहा कि अगर उनकी देखभाल अच्छे से हो तो वे कुछ हद तक ठीक हो सकते हैं। तो फिर मैंने अपनी कमाई से विक्रम का इलाज करवाया लेकिन मेरे मन में उनके लिए अब वो प्यार नहीं बचा था। फिर भी।मैंने अपने कर्तव्य को निभाया फिर मैंने अपने बच्चों को स्कूल में दाखिल करवाया और उनकी पढ़ाई पर ध्यान देने लगी क्योंकि मैं नहीं चाहती थी की मेरे बच्चे मेरी तरह मजबूरी में जिए। अब कही साल बाद एक दिन मैंने सुना की चन्दन शहर छोड़ कर कही और चला गया था।कुछ लोगों ने बताया कि उसने एक नया कारोबार शुरू किया था, लेकिन मुझे उस से कोई मतलब नहीं था। मेरे लिए अब मेरे बच्चे और मेरी मेहनत ही सब कुछ थे। अब मेरे चारो बच्चे बड़े हो रहे थे और मैंने उन्हें सच्चाई, मेहनत और आत्मसम्मान की राह दिखाई। एक दिन।मेरी सबसे बड़ी बेटी ने मुझसे पूछा, माँ हमारे पापा असल में कैसे इंसान हैं? तब मैंने उसका हाथ पकड़ी और कहीं तुम्हारे पापा बीमार हैं, लेकिन तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए सब कुछ है, तुम बस अपने सपनों को पूरा करो और कभी किसी की मजबूरी का फायदा मत उठाना।तब मेरी आँखों में आंसू थे लेकिन मेरे दिल में एक नई ताकत थी क्योंकि अब मैंने अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीना सीख लिया था और अब मेरे बच्चे ही मेरी ताकत थे और मैं उनकी ढाल थी। अब मेरी दुकान भी मोहल्ले में मशहूर हो गई थी।क्यों की? मैंने अपने दम पर एक सम्मानजनक जिंदगी बनाई थी। धीरे धीरे मेरे बच्चों ने अपनी पढ़ाई पूरी की और अच्छी नौकरियां हासिल किया। हालांकि मेरे पति विक्रम अब भी मेरे साथ थे, लेकिन अब वो मेरे लिए सिर्फ एक जिम्मेदारी थे। क्यों की मैंने अपने अतीत को पीछे छोड़ दी थी।और अपने बच्चों की भविष्य की ओर देखी थी तो दोस्तों मेरी कहानी शायद कई औरतों की तरह होगी, लेकिन मैंने इसे अपने तरीके से पूरा किया। मैं कोमल एक माँ, एक मेहनती औरत और अपने बच्चों की ताकत बनी रही तो दोस्तों उम्मीद है ये कहानी आपके दिल को छू गई होगी।अगर पसंद आई तो इस वीडियो लाइक और चैनल को सब्सक्राइब करना मत भूलना। फिर किसी नई कहानी में मुलाकात होगी। bye।

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