हर रात वही जूस… हर सुबह डर… जब आरोही ने सच जाना, तो सबकुछ उजागर हो गया! परंपरा या धोखा?
नमस्ते दोस्तों, Mastani Story 2.0 की दुनिया में आपका स्वागत है। यहाँ हर कहानी में छुपे होते हैं राज़, रहस्य और ऐसी बातें जो आपके दिल को छू जाएँगी। आज मैं आपको सुनाने जा रही हूँ एक ऐसी दास्तान… जिसमें है मोहब्बत, धोखा और ऐसे सवाल जिनका जवाब पाना आसान नहीं है। सुबह की हल्की धूप मेरे कमरे की खिड़की से भीतर आ रही थी। मैं धीरे-धीरे उठी और जैसे ही अपनी नज़र बिस्तर की ओर डाली, मेरे होश उड़ गए। मेरे बगल में मेरे जेठ जी लेटे हुए थे। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। मैं हड़बड़ा कर उठी और जल्दी से अपने कपड़े ठीक किए। उस पल मेरी हालत ऐसी थी जैसे किसी ने मेरे पैरों तले ज़मीन खींच ली हो। मैं सीधे अपनी जेठानी के कमरे की ओर भागी। उनके पास पहुँचकर मैंने काँपते हुए पूछा – “दीदी… जेठ जी मेरे कमरे में… मेरी खाट पर… आखिर क्यों सोए हुए हैं?” जेठानी ने हैरानी से मुझे देखा और बोलीं – “क्या? यह कैसे हो सकता है? रात तो वो यहीं मेरे पास थे, फिर तुम्हारे कमरे में कैसे पहुँच गए?” उनकी बात सुनकर मेरी हालत और खराब हो गई। मैं भागती हुई वापस अपने कमरे में पहुँची और जेठ जी को उठाने लगी। जैसे ही उन्होंने आँखें खोलीं और मुझे देखा, उनके चेहरे का रंग उड़ गया। मैंने गुस्से और रोने के मिले-जुले अंदाज़ में पूछा – “आप यहाँ मेरे बिस्तर पर क्यों सो रहे थे? मैं आपके छोटे भाई की पत्नी हूँ… क्या यह सब ठीक है?” मेरी आवाज सुनकर कमरे में सब लोग आ गए – मेरे पति दीपक और मेरी जेठानी भी। मैंने काँपती हुई आवाज़ में सबको अपनी हालत बताई, लेकिन किसी के चेहरे पर मुझे हमदर्दी नहीं दिखी। सब चुपचाप खड़े रहे। मैंने अपने पति दीपक से कहा – “तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो? यह मेरी इज़्ज़त का सवाल है… तुम चुप क्यों हो?” लेकिन दीपक के होंठों से एक भी शब्द न निकला। उस पल मुझे लगा जैसे मैं अकेली पड़ गई हूँ। अब यहाँ से मेरी असली कहानी शुरू होती है। मेरा नाम आरोही है। मैं एक साधारण परिवार की लड़की हूँ। बचपन से ही हमने तंगी देखी थी। पिता का साया हमारे सिर से जल्दी उठ गया और माँ ने ही हमें पाला। मेरी माँ दिन-रात मेहनत करतीं, दूसरों के घर काम करके हमें पढ़ाती और पालतीं। माँ हमेशा कहती थीं – “आरोही, मेरी बच्ची… मैं चाहती हूँ कि तेरी शादी एक अच्छे घर में हो। तुझे कभी किसी चीज़ की कमी न रहे।” उनकी मेहनत और संघर्ष देखकर मैंने हमेशा यही सोचा कि एक दिन मैं उनकी उम्मीदों को पूरा करूँगी। फिर एक दिन माँ की मुलाकात एक पुराने दोस्त से हुई। उसने बताया कि उसके गाँव में एक पढ़ा-लिखा लड़का है, नौकरी करता है और उसका नाम है दीपक। माँ को यह रिश्ता अच्छा लगा और जल्द ही हमारे परिवारों की मुलाकात हुई। कुछ ही दिनों में शादी तय हो गई। शादी का दिन आया। मैंने लाल रंग की साड़ी पहनी और दुल्हन बनी। दीपक से मैंने सात फेरे लिए और जीवनभर साथ निभाने का वचन दिया। सब कुछ सपनों जैसा लग रहा था। जब मैं अपने ससुराल पहुँची तो देखा कि यह परिवार संपन्न था। बड़ा घर, बड़ी हवेली और भीतर रहने वाले लोग – दीपक, उनके बड़े भाई यानी मेरे जेठ जी और उनकी पत्नी यानी मेरी जेठानी। जेठानी व्हीलचेयर पर बैठी थीं। अभी वो जवान और खूबसूरत थीं लेकिन चल नहीं सकती थीं। उस समय मैं नई-नई दुल्हन थी इसलिए उनसे कुछ भी पूछना ठीक नहीं समझा। रात आई, मेरी सुहागरात। कमरे में दीपक आया। उसके हाथ में जूस का एक गिलास था। मुस्कुराकर बोला – “आरोही, यह जूस पी लो। हमारे घर की परंपरा है कि दुल्हन इसे पीती है।” मैंने मुस्कुराते हुए कहा – “पहले आप पी लीजिए, फिर मैं पियूँगी।” दीपक हँस पड़ा – “नहीं… यह रस्म सिर्फ दुल्हन के लिए है।” मैंने उसकी बात मानकर जूस पी लिया। लेकिन जैसे ही मैंने गिलास खत्म किया, मुझे नींद सी आने लगी और सब धुँधला हो गया। जब आँख खुली तो सुबह हो चुकी थी। मैं अजीब-सी थकान और बोझिलपन महसूस कर रही थी। मैं बाथरूम की ओर बढ़ी, लेकिन रास्ते में मेरी नज़र जेठ जी पर पड़ी। वो मुझे अजीब-सी मुस्कान के साथ देख रहे थे। उस पल मेरे मन में अनगिनत सवाल उठे, लेकिन मैंने चुप रहना बेहतर समझा। यही थी मेरी शादी की शुरुआत। पर वक्त के साथ मैंने देखा कि दीपक का व्यवहार मेरे प्रति बिलकुल भी वैसा नहीं था जैसा एक पति का होना चाहिए। वह मुझसे बहुत कम बात करता, मुझसे दूर-दूर रहता और हमेशा घर के कामों में उलझा रहता। इसके उलट मेरे जेठ जी अक्सर मेरा हालचाल पूछते, मेरी तरफ ऐसी निगाहों से देखते जो मुझे असहज कर देती। उनकी आँखों में एक अजीब-सी तपिश थी… जैसे वो कुछ कहना चाहते हों। दिन बीतते गए, लेकिन मेरे मन के सवाल बढ़ते गए। मेरी शादी को तीन महीने हो चुके थे। इस बीच मेरे दिल में कई सवाल उठे, लेकिन जवाब किसी के पास नहीं था। दीपक यानी मेरे पति… वो मुझसे कभी खुलकर बात नहीं करते थे। जब भी मैं उनके करीब जाना चाहती, वो किसी न किसी बहाने से दूर हो जाते। उनका ध्यान सिर्फ घर के कामों और जिम्मेदारियों में ही लगा रहता। और दूसरी तरफ… मेरे जेठ जी। उनका व्यवहार दिन-ब-दिन मेरे प्रति और अजीब होता जा रहा था। वो हर वक्त मेरा हाल पूछते, मुझे टकटकी लगाकर देखते और उनकी आँखों में वो तपिश… मुझे चैन से जीने नहीं देती थी। मैं समझ नहीं पा रही थी कि आखिर घर में ऐसा क्या हो रहा है। एक दिन हमारे घर में पूजा का आयोजन था। बहुत सारे मेहमान आए हुए थे। घर का माहौल खुशियों से भरा हुआ था। सब लोग भजन-कीर्तन कर रहे थे। मैं भी अपनी जिम्मेदारियाँ निभा रही थी। लेकिन उस बीच, मुझे बार-बार एहसास हो रहा था कि कोई मुझे घूर रहा है। जब मैंने नज़र उठाई तो देखा – मेरे जेठ जी मुझे लगातार देख रहे थे। उनके चेहरे पर एक अजीब-सी मुस्कान थी। मैंने उन निगाहों को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की, लेकिन मेरा मन अशांत होता जा रहा था। पूजा खत्म होने के बाद मैंने दीपक से बात करनी चाही। मैंने कहा – “दीपक, क्या हम थोड़ी देर बैठकर बात कर सकते हैं? मुझे तुमसे कुछ कहना है।” लेकिन उसने टालते हुए कहा – “अभी बहुत काम है, बाद में बात करेंगे।” उसका यह रवैया मुझे और परेशान कर गया। मुझे लगने लगा था कि हमारी शादी में कुछ गंभीर समस्या है, लेकिन वह उसे छुपा रहा है। दिन गुजरते गए। लेकिन एक बात ने मुझे और ज्यादा डराना शुरू कर दिया। हर रात… जब दीपक कमरे में आता, तो हमेशा वही जूस का गिलास लाता। वो कहता – “यह रस्म है, तुम्हें रोज पीना होगा।” मैं मजबूरी में पी लेती। लेकिन उसके बाद मुझे हमेशा गहरी नींद आ जाती और मुझे कुछ याद नहीं रहता था कि रात में क्या हुआ। सुबह उठती तो दीपक कमरे में नहीं होता। यह सिलसिला लगातार चलता रहा। धीरे-धीरे मेरे मन में शक पैदा होने लगा – क्या यह सिर्फ जूस है… या इसके पीछे कोई और राज़ छुपा है? इसी बीच मैंने जेठानी जी से भी बातें करना शुरू किया। वो व्हीलचेयर पर थीं और बहुत शांत स्वभाव की लगती थीं। एक दिन मैंने हिम्मत करके उनसे पूछा – “दीदी, आपकी यह हालत कैसे हुई?” उन्होंने उदास मुस्कान के साथ जवाब दिया – “शादी के दो महीने बाद मेरा एक्सीडेंट हुआ। उस हादसे ने मेरी ज़िंदगी बदल दी। मेरे दोनों पैर ने मेरा साथ छोड़ दिया। तब से मैं बस इसी व्हीलचेयर तक सीमित हो गई।” उनकी आँखों में आँसू थे, लेकिन वो उन्हें रोक रही थीं। मैंने उस दिन महसूस किया कि इस घर की कहानी उतनी आसान नहीं है जितनी बाहर से दिखती है। फिर मैंने गौर किया कि घर की आर्थिक हालत भी अजीब थी। दीपक हमेशा घर के कामों में लगा रहता, लेकिन कोई नौकरी नहीं करता। उसके बावजूद घर में कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होती थी। मैं सोचती – “आखिर इतना सब कैसे चल रहा है? पैसे कहाँ से आ रहे हैं?” मेरे मन में सवालों का तूफ़ान था, लेकिन कोई जवाब नहीं था। छह महीने बीत गए। मैंने हर कोशिश की कि अपनी शादी और अपने रिश्ते को संभालूँ। लेकिन हालात सुधरने की जगह और बिगड़ते गए। और फिर एक सुबह… वो घटना हुई जिसने मेरी ज़िंदगी की तस्वीर ही बदल दी।
मैं नींद से उठी तो देखा कि… मेरे बगल में फिर से जेठ जी सोए हुए थे। मैं सन्न रह गई। मेरे बदन में डर की लहर दौड़ गई। मैं हड़बड़ाकर उठी और जल्दी-जल्दी से खुद को संभालने लगी। उस पल मेरे मन में बस एक ही सवाल था – ये सब हो क्या रहा है? क्या मेरा शक सच है? क्या मैं इतने दिनों से जो महसूस कर रही थी, वही हकीकत है? मैंने जब सुबह आँखें खोलीं और अपने बगल में जेठ जी को देखा, तो मेरा पूरा शरीर काँप उठा। मेरा मन चीखना चाहता था, लेकिन गले से आवाज़ ही नहीं निकली। मैं जल्दी से उठकर कमरे के कोने में जाकर खड़ी हो गई। जेठ जी ने मेरी ओर देखा और धीमे स्वर में कहा – “डरिए मत… यह सब घर की परंपरा है।” उनकी ये बात सुनकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। मैंने काँपती आवाज़ में कहा – “कैसी परंपरा? ये सब क्या हो रहा है? क्यों मेरे साथ…?” लेकिन उन्होंने कोई सीधा जवाब नहीं दिया। बस इतना कहा – “कुछ बातें हैं जो तुम समझोगी, लेकिन अभी वक्त नहीं आया है।” फिर वो उठकर कमरे से बाहर चले गए। मेरे मन में हज़ारों सवाल थे, लेकिन जवाब किसी के पास नहीं था। दिन गुजरते गए, लेकिन मैं चैन से नहीं रह पा रही थी। हर रोज वही जूस… वही गहरी नींद… और सुबह उठते ही वही डर। एक रात मैंने ठान लिया कि आज मैं सच्चाई जानकर रहूँगी। उस दिन जब दीपक ने जूस का गिलास लाकर मुझे दिया, तो मैंने चुपके से उसे पीने का नाटक किया। असल में मैंने उसे तकिए के पास रख दिया। थोड़ी देर बाद दीपक ने समझा कि मैं सो चुकी हूँ और कमरे से बाहर चला गया। मैंने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं और उसका पीछा करने लगी। दीपक सीधे अपने भाई यानी मेरे जेठ के कमरे में गया। मैं दरवाज़े के पास जाकर छुप गई और उनकी बातें सुनने लगी। दीपक बोला – “सब कुछ ठीक चल रहा है। उसे अब तक कुछ पता नहीं चला।” जेठ ने ठंडी हँसी के साथ कहा – “ठीक है… लेकिन ध्यान रहे, अगर उसे ज़रा भी शक हुआ तो हमारी मेहनत बर्बाद हो जाएगी।” दीपक ने जवाब दिया – “नहीं भाई, वो भोली है। उसे बस वही दिखाई देता है जो हम दिखाना चाहते हैं।” उनकी बातें सुनकर मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। मेरे पाँव जैसे ज़मीन में धँस गए हों। अब मुझे पूरा यकीन हो गया था कि यह सिर्फ मेरा भ्रम नहीं है। मेरे साथ कोई बड़ा धोखा हो रहा है। लेकिन सवाल ये था कि आखिर उनका मक़सद क्या है? मुझसे वो चाहते क्या हैं? अगले दिन मैंने अपनी जेठानी से खुलकर बात करने का निश्चय किया। मैं उनके पास जाकर बोली – “दीदी, मुझे लगता है कि इस घर में कुछ अजीब हो रहा है। आप जानती हैं लेकिन बता नहीं रही हैं। कृपया मुझसे सच कहिए।” जेठानी ने मेरी ओर देखा। उनकी आँखों में दर्द और डर दोनों साफ झलक रहे थे। वो धीरे से बोलीं – “तुम्हें अब तक बहुत कुछ समझ जाना चाहिए था। लेकिन सच इतना खतरनाक है कि अगर मैंने बता दिया, तो शायद तुम्हारी दुनिया ही बदल जाएगी।” मैंने ज़िद की – “नहीं दीदी, मुझे सच जानना ही होगा। चाहे वो कितना भी कड़वा क्यों न हो।” जेठानी ने गहरी साँस ली और बोलीं – “ये घर… ये रिश्ता… सब एक छलावा है। तुम्हें जो दिखाई देता है, वो असलियत नहीं है। असलियत बहुत डरावनी है।” मैंने घबराकर पूछा – “तो सच क्या है?” जेठानी ने आँखें बंद कीं और बोलीं – “तुम्हारा पति दीपक… और मेरे पति… दोनों मिलकर तुम्हें धोखा दे रहे हैं। वो तुम्हें इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि घर की एक पुरानी परंपरा को निभा सकें।” मेरे हाथ-पाँव सुन्न हो गए। मैंने काँपती आवाज़ में कहा – “कैसी परंपरा?” लेकिन तभी… कमरे का दरवाज़ा खुला और सामने मेरे जेठ खड़े थे। उनकी नज़रें हम दोनों पर थीं, और उनके चेहरे पर खतरनाक मुस्कान थी। दरवाज़े पर खड़े जेठ की आँखों में अजीब-सी चमक थी। उनकी मुस्कान देखकर मेरी रूह काँप गई। मैं और जेठानी दोनों सहमकर एक-दूसरे को देखने लगे। जेठ ने धीमी लेकिन सख्त आवाज़ में कहा – “आरोही, अब जब तुम सच के इतने करीब आ चुकी हो… तो क्यों न सबकुछ साफ-साफ बता ही दिया जाए।” वो धीरे-धीरे कमरे के अंदर आए और जेठानी की व्हीलचेयर के पास खड़े हो गए। जेठानी ने काँपती आवाज़ में कहा – “भैया, प्लीज़… इसे छोड़ दीजिए। ये बहुत मासूम है, ये सब नहीं जान पाएगी।” लेकिन जेठ ने ठहाका लगाते हुए कहा – “मासूम? यही तो इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है। और हम उसी का फायदा उठा रहे हैं।” मेरे दिल की धड़कनें इतनी तेज़ हो चुकी थीं कि मुझे लग रहा था जैसे अभी बाहर निकल जाएँगी। मैंने हिम्मत जुटाकर पूछा – “आखिर हो क्या रहा है? मुझसे ये सब क्यों छुपाया गया? और हर रात वो जूस क्यों पिलाया जाता है?” जेठ ने ठंडी साँस भरते हुए जवाब दिया – “क्योंकि उस जूस में नींद लाने वाली दवा मिलाई जाती थी। ताकि तुम सो जाओ और तुम्हें कुछ याद न रहे।” ये सुनते ही मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े। मेरे पैरों से जैसे ज़मीन खिसक गई हो। जेठानी ने मेरी ओर देखकर धीमे स्वर में कहा – “आरोही, ये घर एक पुराने श्राप से बँधा हुआ है। हमारी कुल परंपरा के हिसाब से, जब भी घर की बड़ी बहू संतान देने में असमर्थ होती है… तो उसके स्थान पर छोटी बहू से वंश आगे बढ़ाया जाता है।” उनकी ये बात सुनकर मैं पत्थर की मूर्ति-सी वहीं जड़ हो गई। मैंने अविश्वास से कहा – “क्या? ये… ये कैसे हो सकता है? ऐसा कौन-सा जमाना है ये?” जेठ ने हँसते हुए कहा – “तुम्हें लग सकता है कि ये पुराना अंधविश्वास है। लेकिन हमारे परिवार के लिए ये ‘परंपरा’ है, जिसे तोड़ना मना है।” मैंने काँपती आवाज़ में कहा – “तो क्या… मेरा पति भी… इस सब में शामिल है?” जेठानी की आँखों से आँसू टपक पड़े। उन्होंने चुपचाप सिर झुका लिया। और जेठ ने ज़ोर से कहा – “हाँ! दीपक पूरी तरह से इस बात से वाकिफ़ है। उसने ही तुम्हें हमारे हवाले किया… क्योंकि उसके लिए घर की ‘इज़्ज़त’ ज़्यादा मायने रखती है।” मेरे दिल पर जैसे किसी ने हथौड़ा मार दिया हो। वो इंसान, जिसके साथ मैंने सात जन्मों का रिश्ता जोड़ा… वही मेरे साथ सबसे बड़ा धोखा कर रहा था। मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। लेकिन अंदर से मेरी आत्मा चीख-चीखकर कह रही थी कि यह सब सच है। जेठानी ने मेरी ओर देखकर करुण स्वर में कहा – “आरोही, मैं भी कभी तुम्हारी जगह थी। जब मैं शादी करके आई थी, तब मेरे साथ भी यही हुआ। लेकिन मेरे एक्सीडेंट के बाद सबकुछ बदल गया। अब वो तुम्हें उसी परंपरा में बाँधना चाहते हैं।” उनकी आँखों में दर्द और बेबसी साफ झलक रही थी। मुझे ऐसा लगा मानो उनकी अधूरी कहानी अब मुझ पर थोप दी जा रही है। मैंने आँसू पोंछते हुए साहस जुटाया और कहा – “नहीं! मैं इस अन्याय को कभी स्वीकार नहीं करूँगी। मैं उनकी कठपुतली नहीं बनूँगी। चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े।” मेरी इस बात पर जेठ ज़ोर से हँस पड़े। उन्होंने कहा – “आरोही, तुम चाहकर भी इस खेल से बाहर नहीं निकल सकतीं। ये घर, ये दीवारें और ये परंपरा… तुम्हें कभी आज़ाद नहीं होने देंगी।” उस रात मैंने फैसला कर लिया – अब चुप रहने से कुछ नहीं होगा। अगर मुझे अपनी ज़िंदगी बचानी है, तो मुझे सच्चाई सबके सामने लानी ही होगी। लेकिन सवाल ये था कि मैं किस पर भरोसा करूँ? पति पर तो अब शक से भी ज्यादा हो चुका था। जेठानी पहले से ही कैद जैसी ज़िंदगी जी रही थीं। और ससुराल के बाकी लोग इस परंपरा के नाम पर चुप थे। मैं अकेली थी… बिल्कुल अकेली। लेकिन एक बात मैं जान चुकी थी – अगर अब भी मैंने हिम्मत नहीं दिखाई… तो मेरी ज़िंदगी भी जेठानी जैसी ही कैद में बदल जाएगी। उस रात मैं पूरी तरह टूट चुकी थी। जिस पति को मैंने अपना सबकुछ माना, वही मेरे साथ धोखा कर रहा था। जिस घर को मैंने अपना घर समझा, वही मुझे कैद बना रहा था। लेकिन अंदर कहीं एक आग जल रही थी – अब और नहीं। अगले दिन सुबह मैंने तय कर लिया कि मुझे सच्चाई उजागर करनी ही होगी। लेकिन ये आसान नहीं था। क्योंकि दीपक और जेठ दोनों ही चालाक थे और मुझे हर वक्त निगाहों में रखते थे।

मैंने चुपके-चुपके अपने मायके फोन करने की कोशिश की, लेकिन हर बार फोन मेरे हाथ में आने से पहले ही कोई न कोई बहाना बनाकर ले लिया जाता। मेरे आस-पास जैसे एक अदृश्य पहरा था। एक दिन मौका मिला। घर में रिश्तेदार आए थे और सब पूजा-पाठ में व्यस्त थे। मैंने चुपके से जेठानी के कमरे में जाकर उनसे कहा – “दीदी, अब वक्त आ गया है। अगर हम आज नहीं बोले तो शायद कभी बोल नहीं पाएँगे।” जेठानी ने डरी हुई नज़रों से मुझे देखा और कहा – “लेकिन आरोही, ये बहुत खतरनाक है।” मैंने दृढ़ स्वर में कहा – “खतरा अब सहने का नहीं, मिटाने का है।” उस रात मैंने अपनी जेठानी को अपना साथ देने के लिए मना लिया। हमने तय किया कि कल होने वाले बड़े पारिवारिक भोज में सबके सामने सच खोल देंगे। भोज का दिन आया। पूरा घर मेहमानों से भरा हुआ था। हर तरफ हँसी-खुशी का माहौल था। दीपक और जेठ दोनों गर्व से मेहमानों का स्वागत कर रहे थे, जैसे उन्हें अपने राज़ पर पूरा भरोसा हो कि कभी उजागर नहीं होगा। लेकिन उन्हें क्या पता था कि आज सबकुछ बदलने वाला है। भोज शुरू हुआ। मैंने मौका पाकर सबसे सामने खड़े होकर कहा – “आज मैं आप सबके सामने एक सच लाना चाहती हूँ। वो सच जो इस घर की दीवारों में दबा दिया गया है।” सभी मेहमान चौंक गए। मेरे पति दीपक और जेठ दोनों ने घबराकर मेरी ओर देखा। दीपक तुरंत बोला – “आरोही, ये क्या कर रही हो? यहाँ कोई तमाशा मत करो।” लेकिन मैं रुकने वाली नहीं थी। मैंने सबके सामने कहा – “इस घर की परंपरा के नाम पर औरतों को कैद बनाया जाता है। मुझे हर रात जूस के नाम पर दवा दी जाती थी ताकि मैं बेहोश हो जाऊँ और अगली सुबह कुछ याद न रहे। ये सब मेरे पति और जेठ की चाल थी… ताकि एक पुरानी परंपरा निभाई जा सके।” पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया। मेहमान एक-दूसरे को देख रहे थे। जेठ गुस्से से खड़े होकर बोले – “चुप रहो! तुमने हमारे खानदान की इज़्ज़त पर दाग लगाया है।” मैंने निडर होकर जवाब दिया – “इज़्ज़त तब होती है जब औरत का सम्मान हो। और जहाँ औरत की ज़िंदगी को कैद बना दिया जाए, वहाँ इज़्ज़त नहीं, बस ढोंग होता है।” मेरे पति दीपक भी कुछ बोलने ही वाले थे कि तभी… मेरी जेठानी ने अपनी व्हीलचेयर आगे बढ़ाई और ज़ोर से कहा – “आरोही सच कह रही है! ये सब कुछ सालों से चल रहा है। पहले मेरे साथ, और अब इसके साथ। आज मैं चुप नहीं रहूँगी।” उनकी आवाज़ सुनते ही सब मेहमान हैरान रह गए। अब माहौल बदल चुका था। रिश्तेदारों और समाज के लोगों ने मिलकर दीपक और जेठ को घेर लिया। उनकी करतूतें सबके सामने आ चुकी थीं। उस रात पहली बार… मैंने अपने अंदर की कैद टूटी हुई महसूस की। मैं और जेठानी एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराईं। हम दोनों जानती थीं कि लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई, लेकिन पहला कदम हम उठा चुके थे। आखिरकार, मैंने अपने लिए एक नया रास्ता चुना। मैंने तय किया कि अब अपनी ज़िंदगी अपने फैसलों से जीऊँगी, किसी झूठी परंपरा के नाम पर नहीं। और दोस्तों… कभी-कभी सच सामने लाने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए, लेकिन जब वो हिम्मत आ जाती है, तो सबसे बड़ी जंजीरें भी टूट जाती हैं। 👉 कहानी का संदेश: समाज में कई बार परंपरा और रस्म के नाम पर औरतों को बंधन में बाँध दिया जाता है। लेकिन असली परंपरा वही है जिसमें सम्मान और समानता हो।



