नमस्ते दोस्तों, Mastani Story 2.0 में आपका दिल से स्वागत है! यहाँ आपको मिलेंगी वो कहानियाँ जिनमें छुपे हैं भावनाओं के उतार–चढ़ाव, रिश्तों के राज़ और ज़िन्दगी के अनकहे किस्से। हर कहानी आपको सोचने पर मजबूर कर देगी। तो तैयार हो जाइए, एक नई रोमांचक यात्रा की शुरुआत करने के लिए। परिवार और रहस्य की शुरुआत मेरे चाचा जी 65 साल की उम्र में भी गज़ब के ताकतवर और तंदुरुस्त थे। उनकी चाल, उनकी आवाज़ और उनका व्यक्तित्व ऐसा लगता मानो वे किसी नौजवान की तरह हों। गाँव में अक्सर लोग उनकी फिटनेस और काम करने की क्षमता की चर्चा करते रहते। चाची जी से उनका रिश्ता भी बड़ा ही गहरा था। वे हमेशा उनका ख्याल रखते और उन्हें खुश रखने की कोशिश करते। लेकिन धीरे–धीरे मैंने महसूस किया कि इस रिश्ते में कुछ ऐसा भी छुपा है जिसे सबकी नज़र से बचाकर रखा गया है। रात को कई बार चाची के कमरे से अजीब–अजीब आवाज़ें आतीं। पहले मैंने ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब मैंने देखा कि अगली सुबह चाची जी कमरे से बाहर निकलतीं तो बहुत थकी और कभी–कभी लंगड़ाती हुई दिखतीं, तो मेरे मन में सवाल उठने लगे। आखिर ये सब क्यों हो रहा है? सोनम की कहानी मेरा नाम सोनम है। मैं 22 साल की हूँ और एक मिडिल क्लास परिवार से ताल्लुक रखती हूँ। घर में हम दो ही भाई–बहन थे – मैं और मेरा बड़ा भाई रवि। भाई की शादी एक साल पहले ही हुई थी और भाभी हमारे घर आई थीं। भाभी के आने से घर का माहौल और भी अच्छा हो गया था। मम्मी–पापा अक्सर कहते, “भगवान सबको रवि जैसा बेटा और सोनम जैसी बेटी दे।” भाई रोज़ ऑफिस से लौटते तो हमारे लिए कुछ न कुछ लेकर आते। मम्मी–पापा को भाई पर गर्व था और मुझे अपने भाई–भाभी के रिश्ते को देखकर सच्चे प्यार पर भरोसा होने लगा था। शादी का रिश्ता मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और मम्मी–पापा अब मेरी शादी की चिंता करने लगे थे। कुछ ही दिनों में पापा को अमित नाम का एक अच्छा लड़का मिला। अमित के माता–पिता नहीं थे, लेकिन उसके चाचा–चाची ने उसे अपने बेटे की तरह पाला था। पापा ने सब छानबीन की और उन्हें लगा कि यह रिश्ता मेरे लिए बिल्कुल सही है। जल्दी ही मेरी शादी तय हो गई। मेरे मन में कई सपने सजने लगे। हर लड़की की तरह मैं भी अपने दूल्हे के साथ नई ज़िंदगी के ख्वाब देखने लगी। 15–16 दिनों के अंदर ही हमारी शादी हो गई और मैं अपने ससुराल आ गई। ससुराल का पहला अनुभव ससुराल पहुँचने पर चाचा और चाची ने मुझे देखकर बहुत खुशी जताई। शादी की रस्में पूरी हुईं और रात को मुझे मेरे कमरे में भेज दिया गया। मैं अपने सुहाग सेज पर बैठी बहुत बेचैन थी। “सुहागरात का नाम तो बहुत सुना था, ये एक यादगार दिन होता है।” मेरे मन में घबराहट और उत्साह दोनों ही थे। थोड़ी देर बाद अमित कमरे में आए और मेरे पास बैठ गए। उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर कहा – “सोनम, मैं बहुत खुश हूँ कि मुझे तुम्हारे जैसा जीवनसाथी मिला। लेकिन एक राज़ है जो मुझे तुम्हें बताना है।” फिर अमित ने अपने माता–पिता के बारे में बताया। दो साल पहले एक दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी। तब से चाचा और चाची ने ही उन्हें पाला था। मैं उनकी बातें चुपचाप सुन रही थी। अमित ने कहा – “चाचा और चाची के अपने कोई बच्चे नहीं हैं। चाची को कई सालों तक संतान नहीं हुई। जब इलाज कराया गया तो वह प्रेग्नेंट तो हुईं, लेकिन बच्चे के जन्म के समय अचानक उनकी हालत बिगड़ गई। डॉक्टर ने कहा कि सिर्फ किसी एक को ही बचाया जा सकता है। उस समय चाचा ने बिना देर किए चाची को बचाने का फैसला किया। लेकिन डॉक्टर ने साफ कह दिया कि अब चाची कभी मां नहीं बन पाएंगी।” यह सुनकर मैं सन्न रह गई। अमित की आँखों में आँसू थे। उन्होंने कहा – “चाचा–चाची के इस त्याग को मैं कभी भूल नहीं सकता। उन्होंने मुझे अपना बेटा मानकर पाला है। मैं आज जो भी हूँ उन्हीं की वजह से हूँ।” मन का द्वंद्व अमित की बातें सुनकर मैं भावुक हो गई। मैंने उन्हें दिलासा दिया और कहा – “आप चिंता मत कीजिए। अब मैं भी आपके साथ चाचा–चाची का पूरा ख्याल रखूँगी।” लेकिन उस रात जब अमित जल्दी ही थककर सो गए, तो मेरे मन में एक खालीपन रह गया। मैं सोचने लगी कि जिन सपनों और ख्वाबों के साथ मैं यहाँ आई थी, क्या वो पूरे हो पाएँगे? रात भर मैं जागती रही। अगली सुबह जब बाहर निकली तो देखा – चाचा जी सहन में खड़े होकर कसरत कर रहे थे। 65 साल की उम्र में भी उनका जोश देखकर मैं दंग रह गई। वहीं दूसरी ओर, चाची जी अक्सर कमर पकड़कर शिकायत करतीं – “ये दर्द कब जाएगा, मैं तो अब और थक गई हूँ।” उनकी बातें सुनकर मेरे मन में और भी सवाल उठने लगे। संदेह और बेचैनी दिन बीतते गए। कभी–कभी रात को चाचा–चाची के कमरे से आती अजीब आवाज़ें मुझे परेशान कर देतीं। मैं खिड़की या दरवाज़े के पास जाकर झाँकने की कोशिश करती, लेकिन कुछ साफ दिखाई नहीं देता। मेरे मन में बस यही सवाल घूमता – “आखिर चाचा–चाची के बीच ऐसा क्या है जो चाची को कभी थका देता है, कभी बेचैन कर देता है… और क्यों मेरे पति अमित हमेशा थके–थके से रहते हैं?” मैं अपने आप से लड़ती रही, लेकिन उस रहस्य को जानने की बेचैनी हर दिन बढ़ती जा रही थी। चाचा के शब्द मेरे कानों में गूंज रहे थे। “कभी-कभी रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं सोनम…” मैं स्तब्ध थी। मेरे लिए ये सिर्फ़ एक घर का झगड़ा या प्यार की कमी नहीं थी, बल्कि एक ऐसा सच जो हमारी पूरी ज़िंदगी बदल सकता था। सोनम की बेचैनी उस रात मैं सो नहीं पाई। अमित मेरे पास था लेकिन नींद में भी वह कराह रहा था। उसके सीने की जलन, उसके सिरदर्द की शिकायतें अब आम हो चुकी थीं। मैंने उसकी हथेली को अपने हाथों में लिया। “क्या मैं ही ग़लत हूँ? क्या मैं ही ज़िम्मेदार हूँ?” ये सवाल मुझे भीतर से तोड़ रहे थे। सुबह होते ही मैंने चाची को रसोई में देखा। उनकी आँखों में नींद की कमी साफ़ दिख रही थी। मैंने हिम्मत करके पूछा – “चाची… ये सब कब से चल रहा है? आप और चाचा के बीच ये रिश्ता…” वह चुप रही। कुछ देर तक सब्ज़ियाँ काटती रहीं। फिर धीरे से बोलीं – “सोनम, हर औरत की ज़िंदगी में एक मोड़ आता है जहाँ उसे तय करना होता है कि वो टूटकर बिखर जाएगी या फिर किसी तरह जीने का सहारा ढूंढेगी। अमित की बीमारी ने मुझे अंदर तक डरा दिया था। मैं अकेली पड़ गई थी… और तुम्हारे चाचा ही एकमात्र सहारा बन गए।” मैं उनकी आँखों में देख रही थी। वहाँ ग्लानि भी थी, और गहरी मोहब्बत भी। गाँव की फुसफुसाहटें गाँव छोटा था। और छोटे गाँव में राज़ ज़्यादा दिन राज़ नहीं रहते। कुछ लोगों ने चाचा और चाची को लेकर बातें बनानी शुरू कर दी थीं। “अरे, तुम्हारे घर में सब ठीक तो है न?” कभी पड़ोसन पूछ लेती। मैं बस मुस्कुरा देती और बात टाल देती। लेकिन भीतर से मेरा मन काँप जाता। अगर ये सच बाहर आ गया तो? अगर किसी ने अमित को सब बता दिया तो? अमित की हालत कुछ दिन बाद अमित की हालत अचानक बिगड़ गई। उसे अस्पताल ले जाना पड़ा। डॉक्टर ने कहा – “आपके पति की तबियत इतनी खराब इसलिए हो रही है क्योंकि वे समय पर इलाज और दवा नहीं ले रहे। इनका हृदय कमज़ोर हो चुका है। इन्हें आराम की ज़रूरत है।” मैं फूट-फूट कर रो पड़ी। अमित ने मेरा हाथ पकड़कर कहा – “सोनम… अगर मुझे कुछ हो गया तो… तुम अकेली संभाल लेना।” मैंने उसकी आँखों पर हाथ रख दिया – “ऐसी बात मत करो। कुछ नहीं होगा तुम्हें।” लेकिन उस क्षण मुझे अहसास हुआ कि मेरे पति शायद ज़्यादा दिन मेरे साथ न रह पाएँ। चाचा का त्याग अमित के इलाज का खर्चा बहुत ज़्यादा था। मेरे मायके से मदद मिलने की उम्मीद नहीं थी। तभी चाचा आगे आए। उन्होंने अपने खेत का एक हिस्सा बेच दिया और पैसे अस्पताल में जमा कराए। मैंने विरोध किया – “चाचा, आप क्यों अपनी मेहनत की कमाई बेच रहे हैं?” वो मुस्कुराए – “सोनम, ये खेत किस काम का अगर तुम्हारे पति की जान ही न बचे? मैं सब संभाल लूंगा।” उनकी आँखों में सच्चाई थी। उस दिन मैंने महसूस किया कि चाहे लोग जो भी कहें,लेकिन चाचा के दिल में सिर्फ़ त्याग और परिवार को बचाने की चाहत थी। अंदरूनी टकराव लेकिन मेरी बेचैनी बढ़ रही थी। कभी मैं सोचती कि चाचा-चाची का रिश्ता ग़लत है। कभी लगता कि वो दोनों ही मजबूरियाँ झेल रहे हैं। रात को नींद में मुझे बार-बार अजीब सपने आने लगे। कभी लगता अमित मुझे छोड़कर जा रहा है। कभी लगता चाचा मुझे बुला रहे हैं। मैंने खुद से कहा – “मुझे मज़बूत बनना होगा। इस घर को टूटने नहीं देना है।” चाची का इकरार एक शाम चाची मेरे पास आईं। उन्होंने कहा – “सोनम, मुझे लगता है कि तुम हमसे नाराज़ हो।” मैंने धीरे से कहा – “नाराज़गी नहीं चाची, डर है। अगर ये सब सच अमित को पता चला तो? वो टूट जाएगा।” चाची ने गहरी साँस ली और बोलीं – “तुम्हारा डर सही है। लेकिन एक बात याद रखना… हमने जो भी किया, वो सिर्फ़ जीने की मजबूरी थी, मोहब्बत से ज्यादा जिम्मेदारी निभाने के लिए।” उनके शब्द मेरे दिल में उतर गए। सच का बोझ अब घर में हर कोई अपने-अपने डर और राज़ में जी रहा था। अमित को अपने स्वास्थ्य का डर था। चाची को अपने राज़ के खुलने का। चाचा को समाज की नज़रों का। और मुझे… सबको संभालने की ज़िम्मेदारी का। हर दिन एक नई कशमकश के साथ बीत रहा था। नई परीक्षा डॉक्टर ने कहा कि अमित का ऑपरेशन कराना पड़ेगा। खर्चा और बढ़ गया। चाचा ने और जमीन गिरवी रख दी। गाँव में फिर बातें उठीं। “इतना पैसा आखिर क्यों खर्च कर रहा है वो अमित पर?” “कहीं इसके पीछे कोई और वजह तो नहीं?” ये बातें मुझे तीर की तरह लग रही थीं। लेकिन मैं चुप रही। क्योंकि मेरे लिए सबसे बड़ा सच था – अमित को बचाना। सोनम का संकल्प मैंने तय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो, मैं इस घर को टूटने नहीं दूँगी। मैंने खुद को भगवान के सामने समर्पित कर दिया। “हे प्रभु, अगर मेरी ज़िंदगी का मकसद यही है कि मैं अमित को और इस परिवार को बचाऊँ, तो मुझे ताक़त दो।” Suspense की परछाइयाँ लेकिन मुझे नहीं पता था कि असली तूफ़ान अभी आना बाकी था। ऑपरेशन की रात अचानक अस्पताल में एक अजनबी ने मुझे रोका और फुसफुसाकर कहा – “तुम्हें पता है? तुम्हारे चाचा और चाची के बीच का रिश्ता… पूरा गाँव जानता है। जल्द ही सबके सामने आ जाएगा।” मैं सन्न रह गई। मेरे कदम जैसे ज़मीन पर जम गए। अब सवाल ये था – क्या मैं अमित को बचा पाऊँगी? क्या मैं इस घर की इज़्ज़त बचा पाऊँगी? या सबकुछ बिखर जाएगा? ऑपरेशन की रात अस्पताल की उस ठंडी रात में सबकी सांसें अटकी हुई थीं। अमित का ऑपरेशन चल रहा था। मैं बार-बार घड़ी देख रही थी। चाचा और चाची भी वहीं थे। अचानक वही अजनबी फिर सामने आया जिसने पहले मुझे रोका था। उसने धीमी आवाज़ में कहा – “तुम चाहे जितना छुपाओ, लेकिन सच्चाई ज़्यादा दिन नहीं दबेगी। गाँव में लोग बातें बना रहे हैं… और बहुत जल्द ये राज़ सबके सामने होगा।” मैंने कांपती आवाज़ में कहा – “कौन हो तुम? क्यों हमारे पीछे पड़े हो?” वो मुस्कुराया और बोला – “मैं वही हूँ जिसे तुम्हारे चाचा ने सालों पहले धोखा दिया था। अब बदला लेने का वक्त आ गया है।” उसके शब्द मेरे दिल में छुरे की तरह लगे। अमित की जान बची घंटों की प्रतीक्षा के बाद डॉक्टर बाहर आए। “ऑपरेशन सफल रहा है, लेकिन अभी मरीज को लंबे आराम और देखभाल की ज़रूरत होगी।” मैं भगवान का शुक्रिया अदा करते हुए रो पड़ी। चाचा ने मेरी पीठ थपथपाई – “सब ठीक हो जाएगा बेटा।” लेकिन मुझे मालूम था कि असली लड़ाई अब शुरू होगी। गाँव में चर्चा कुछ ही दिनों में गाँव में अफवाहें और तेज़ हो गईं। लोग कहते – “चाचा इतना सब क्यों कर रहा है अमित के लिए?” “कहीं कोई और रिश्ता तो नहीं…” ये बातें मेरे कानों तक पहुंचतीं और मुझे भीतर तक तोड़ देतीं। चाची अब घर से कम ही निकलतीं। उनकी आँखों में डर और शर्म की छाया साफ़ दिखती थी। सोनम का सामना एक दिन मैंने हिम्मत जुटाकर उस अजनबी से मिलने का निश्चय किया। मैंने उसे खेतों के रास्ते बुलाया। “तुम्हें क्या चाहिए?” मैंने पूछा। उसने ठंडी हंसी हंसते हुए कहा – “मुझे सिर्फ़ इंसाफ चाहिए। तुम्हारे चाचा ने सालों पहले मेरे परिवार की ज़मीन हड़प ली थी। मैं बदला लेने आया हूँ। तुम्हें लगता है कि वो बहुत नेक हैं, लेकिन उनके हाथ भी साफ़ नहीं हैं।” मैं हक्की-बक्की रह गई। क्या चाचा वाकई ऐसे थे? चाचा का सच उस रात मैंने चाचा से सीधे पूछ लिया – “चाचा, ये आदमी कह रहा है कि आपने उसका हक़ छीना था। सच क्या है?” चाचा कुछ देर चुप रहे। फिर भारी आवाज़ में बोले – “हाँ सोनम, सच ये है कि मैंने अपनी ज़मीन बचाने के लिए कई बार सख्ती की थी। लेकिन जो भी किया, अपने परिवार को भूख से बचाने के लिए किया। शायद उसमें गलती भी हुई हो।” उनकी आँखों से आंसू बह रहे थे। “लेकिन एक बात साफ़ है – तुम्हारे अमित के लिए मैंने जो किया, वो सिर्फ़ और सिर्फ़ परिवार के लिए था।” मैंने उनके हाथ थाम लिए। “चाचा, इंसान से गलती हो सकती है। लेकिन मैं जानती हूँ कि आपका दिल साफ़ है।” अमित का संदेह ऑपरेशन के बाद अमित धीरे-धीरे ठीक हो रहा था। लेकिन अब उसके मन में शंका घर करने लगी थी। एक शाम उसने मुझसे पूछा – “सोनम, ये चाचा इतने पैसे क्यों खर्च कर रहे हैं मेरे लिए? क्या इसके पीछे कोई और वजह है?” उसकी आँखों में संदेह था। मैं घबरा गई। अगर मैंने कुछ ग़लत कहा तो वो टूट जाएगा। मैंने धीरे से कहा – “अमित, वो सिर्फ़ तुम्हें बचाना चाहते हैं। उन्होंने हमेशा इस घर को परिवार समझा है।” वो चुप हो गया। लेकिन मैं समझ गई कि उसकी शंका अभी पूरी तरह मिट नहीं पाई। गाँव की पंचायत आख़िरकार वो दिन भी आ गया जब गाँव वालों ने पंचायत बुला ली। मुद्दा यही था – चाचा और चाची का रिश्ता। पंचायत के सामने लोग चिल्ला रहे थे – “ये रिश्ता हमारे गाँव की इज़्ज़त के खिलाफ़ है।” “ऐसे लोगों को सज़ा मिलनी चाहिए।” चाचा और चाची खामोश खड़े थे। अमित भी वहाँ था, अब थोड़ा संभल चुका था। मैंने हिम्मत जुटाकर सबके सामने कहा – “अगर आज कोई भी सज़ा मिलेगी, तो हमें सबको मिलनी चाहिए। क्योंकि ग़लती हमारी मजबूरियों की थी, नीयत की नहीं। चाचा ने जो किया, वो सिर्फ़ परिवार को बचाने के लिए था।” गाँव वाले फुसफुसाने लगे। अमित का निर्णय सभी की नज़रें अमित पर थीं। उसने कांपती आवाज़ में कहा – “आज मैं सबके सामने सच कहना चाहता हूँ। हाँ, मैं बीमार था… और मैंने अपनी पत्नी को अकेला छोड़ दिया था। मेरे चाचा ने हमारी मदद की, हमारे लिए अपनी ज़मीन तक बेच दी। अगर ये ग़लत है, तो फिर सही क्या है?” उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। “मेरे लिए चाचा-चाची माँ-बाप से बढ़कर हैं। मैं उनके त्याग को कलंक नहीं बनने दूँगा।” पूरा गाँव सन्न रह गया। गाँव का फैसला पंचायत ने लंबी बहस के बाद ऐलान किया – “भले ही रास्ता असामान्य था, लेकिन इनके इरादे नेक थे। हम इन्हें दोषी नहीं मानते। ये परिवार अब भी हमारे गाँव की इज़्ज़त है।” लोग धीरे-धीरे शांत हो गए। चाचा-चाची ने राहत की सांस ली। मैंने भगवान को धन्यवाद दिया। नई शुरुआत धीरे-धीरे ज़िंदगी वापस पटरी पर आने लगी। अमित अब ठीक हो चुका था। चाचा-चाची ने गाँव छोड़ने का फैसला किया और पास के शहर में रहने लगे ताकि पुरानी बातें पीछे छूट जाएँ। हम सबने मिलकर नया घर बसाया। सोनम का आत्मचिंतन कभी-कभी रात को मैं छत पर बैठकर सोचती हूँ – ज़िंदगी कितनी अजीब है। कभी हमें ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करती है जहाँ हमें ग़लत और सही के बीच नहीं, बल्कि दो मजबूरियों के बीच चुनाव करना पड़ता है। आज भी गाँव वाले शायद हमें पूरी तरह न समझें। लेकिन मेरे लिए सच यही है – ये परिवार मेरे लिए सबकुछ है। अंतिम मोड़ एक दिन अमित ने मेरा हाथ पकड़कर कहा – “सोनम, अगर मैं फिर कभी बीमार पड़ा तो… वादा करो तुम कभी अकेली नहीं पड़ोगी।” मैंने मुस्कुराकर कहा – “अब मैं अकेली नहीं हूँ अमित। हमारे पास ये परिवार है… और यही हमारी असली ताक़त है।” हम दोनों ने आसमान की ओर देखा। सूरज की किरणें घर के आँगन में फैल रही थीं। और मुझे लगा – हर तूफ़ान के बाद नया सवेरा ज़रूर आता है।